The physical region of Rajasthan is a vast and diverse landscape, with a range of terrain and natural features. From the rugged Aravalli hills in the north to the sandy Thar Desert in the west, the physical region of Rajasthan offers a wealth of opportunities for outdoor adventure and exploration.
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राजस्थान के भौतिक विभाग
- राजस्थान को भौतिक स्वरूप / स्थालाकृतिक स्थालाकृतिक स्वरूप / उच्चावच के आधार पर 4 स्वरूपों में बाँटा गया है-
प्रदेश का नाम | विस्तृत क्षेत्रफल | राज की कुल जनसंख्या का प्रतिशत |
1. पश्चिम का रेतीला मैदानी प्रदेश 2. मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश 3. पूर्व का नदियों द्वारा निर्मित मैदानी प्रदेश 4. दक्षिण पूर्व का पठारी प्रदेश | 61.11% 9% 23% 6.89% (लगभग 7% ) | 40% 10% 39% 11% |

राजस्थान के भौतिक प्रदेश से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न Rajasthan physical region important question
- पश्चिम का रेतीला मैदानी प्रदेश / थार का मरूस्थल –
- थार का मरूस्थल विश्व का एकमात्र ऐसा जीवन्त मरूस्थल है जिसमें सर्वाधिक जैव विविधता पाई जाती है। तथा विश्व के सभी मरूस्थलों में से सर्वाधिक जनसंख्या भी इसी मरूस्थल में निवास करती है। तथा सर्वाधिक जनघनत्व भी इसी मरूस्थल का है।
- इयोसिन व प्लीस्टोसीन काल के प्रारम्भ तक थार के मरूस्थल स्थान पर टैथीस सागर था। इस बात के प्रमाण थार के मरूस्थल में हम्मादा व इर्ग से मिलते है।
- हम्मादा :- रेत के साथ चट्टानों के अवशेष
- इर्ग/अर्ग :- रेत ही रेत (पूर्णत रेतीला मरूस्थल )
- रेग भी मरूस्थल का एक प्रकार है। जिसका अर्थ रेत के साथ कंकर – पत्थर होना अर्थात् कंकर पथरीला मरूस्थल रेग कहलाता है।
- सहारा मरूस्थल का निर्माण रेग से हुआ है। सहारा मरूस्थल विश्व का सबसे लम्बा मरूस्थल है। थार का मरूस्थल – ग्रेट पेलियोआर्कटिक अफ्रीकी मरूस्थल का पूर्वी भाग है।
- थार का मरूस्थल विश्व के 2 देशों भारत व पाकिस्तान फैला हुआ है। पाकिस्तान में थार के मरूस्थल को “चौलिस्तान” कहा जाता है एवं राजस्थान के जैसलमेर व श्रीगंगानगर जिले में ‘थली/थाली’ के नाम से जाना जाता है।
- भारत में थार का मरूस्थल 4 राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व गुजरात राज्यों में फैला है।
- राजस्थान में थार का मरूस्थल अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में 25°N से 30° N तक और 69°30′ E से 76° 45’E के मध्य विस्तृत है। यह पश्चिम राजस्थान के 12 जिलों- श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू, झुन्झुनु, सीकर, नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, पाली जालौर, बाड़मेर, जोधपुर में 175000 वर्ग K.M क्षेत्रफल पर फैला है जो राजस्थान क्षेत्रफल का 61.11% (दो तिहाई ) भाग फैला है
- भारत के मरूस्थल का 60% भाग केवल राजस्थान में फैला हुआ है।
- बालू मिट्टी के आधार पर इस प्रदेश को 2 भागों में बाटा गया है-
- बालूका स्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश :- राजस्थान मरूस्थल के सुनूर पश्चिमी भाग में कई प्रकार के बालूका स्तूप पाये जाते है। ये बालूका स्तूप वायु अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम है-
- अनुदैर्ध्य / पवनानुवर्ती / रेखीय बालूका स्तूप :- ये बालूका स्तूप पवनों के समानान्तर बने होते है। तथा लम्बे, गहरे एवं स्थिर होते है। इन लम्बे धोरो में मानवीय बस्तियों का निर्माण होता है।
- अनुप्रस्थ बालुका स्तूप :- ये बालूका स्तूप पवनों के समकोण पर बनते है। तथा सर्वाधिक मरूस्थलीकरण के लिए उत्तरदायी है।
- बरखान बालूका स्तूप :- अर्द्धचन्द्राकार आकृति के ये बालूका सर्वाधिक विनाशकारी गतिशील, रम्रयुक्त व नवीन बालुयुक्त होते है।
- तारा बालुका स्तूप :- मोहनगढ़, पोकरण (जैसलमेर) तथा सूरतगढ़ (श्रीगंगानगर) में पाये जाते है। इन बालूका स्तूपों का निर्माण अनियतवादी एव संश्लिष्ट पवनों वाले क्षेत्रों में होता है।
- पश्चिम के इस रेतीले मैदानी प्रदेश में निम्न प्रकार के प्राकृतिक जलाशय पाये जाते हैं जिनका निर्माण वर्षाकाल के दौरान होता है।
- (i) रण/ टाट :- थार के मरूस्थल में दो बालूका स्तूपों के मध्य निम्न भूमि में वर्षा जल भरने से बनी अस्थाई झीले रण/ टाट कहलाती है। इनकी सर्वाधिक संख्या- जैसलमेर में पाई जाती है।
- बरमसर, पोकरण व भाकरी रण – जैसलमेर
- थोब रण – बाड़मेर
- बाप रण – जोधपुर
- Note :- भारत का सबसे बड़ा रण – कच्छ का रण (गुजरात)
- (ii) बलासन :- मरूस्थलीय प्रदेशों में चारों और से पर्वतों से घिरा हुआ व अभिकेन्द्रीय भाग जिसमें वर्षा जल एकत्रित होता है बालसन कहलाता है।
- (iii) प्लाया :- मरू प्रदेशों में पवनों के अपरदन से निर्मित गर्तौ (गड्डों) में वर्षा जल भरने से इन प्लाया झीलों का निर्माण होता है।
- (i) रण/ टाट :- थार के मरूस्थल में दो बालूका स्तूपों के मध्य निम्न भूमि में वर्षा जल भरने से बनी अस्थाई झीले रण/ टाट कहलाती है। इनकी सर्वाधिक संख्या- जैसलमेर में पाई जाती है।
- पश्चिम के इस रेतीले मैदानी प्रदेश में निम्न प्रकार के प्राकृतिक जलाशय पाये जाते हैं जिनका निर्माण वर्षाकाल के दौरान होता है।
- बालूका स्तूप मुक्त मरूस्थली प्रदेश – इस प्रदेश में अवसादी एवं परतदार चट्टानों की मात्रा अधिक मिलती है जिनके रन्ध्रो में जल के अथाह भण्डार है जैसे- लाठी सीरीज
- यह प्रदेश थार के मरूस्थल के लगभग 40% भाग पर फलौदी मोहनगढ व पोकरण तहसीलों के बीच फैला हुआ है।
- 25 सेमी वार्षिक वर्षा रेखा के आधार पर भी पश्चिम के Note :- रेतीले मैदानी प्रदेश को पुनः 2 भागों में बांटा गया है
- 1. शुष्क प्रदेश – पश्चिम के रेतीले मैदानी प्रदेश का वह भाग जहां वार्षिक वर्षा 25 cm से भी कम होती है। शुष्क प्रदेश के अन्तर्गत आता है। यह प्रदेश सम्पूर्ण बीकानेर एवं जैसलमेर 1⁄2 चुरू व बाड़मेर तथा जोधपुर व नागौर में फैला ‘हुआ है जो महान मरूस्थल के अन्तर्गत आता है।
- 2. अर्द्धशुष्क प्रदेश – पश्चिम के रेतीले मैदानी प्रदेश का वह भाग जहां वार्षिक वर्षा 25 – 50 cm होती है। इस प्रदेश को भौतिक संरचना के आधार पर पुनः 4 भागों में बांटा गया
- i. घग्घर का मैदान :-
- राजस्थान की अन्तः प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है।
- जिसका उद्गम – शिवालिक हिमालय में कालका पहाड़ (हिमाचल प्रदेश) होता है।
- हिमाचल प्रदेश के बदा पंजाब, हरियाणा व राजस्थान राज्यों में बहते हुये पाकिस्तान के फोर्ट अब्बास तक जाती है।
- राजस्थान में प्रवेश – हनुमानगढ़ जिले में टिब्बी तहसील से । राजस्थान में हनुमानगढ़ शहर, भटनेर, सूरतगढ़ व अनूपगढ (श्रीगंगानगर) से बहती हुई जाती है।
- पाकिस्तान में घग्घर नदी के बहाव क्षेत्र हकरा/अकरा के नाम से जाना जाता है।
- उपनाम – नट, नाली, पाट, मृत
- Note :- घग्घर नदी के किनारे हनुमान में कालीबंगा सभ्यता (अर्थ- काले रंग की चूड़िया) विकसित हुई जिसकी खोज 1951-52 अमलानन्द घोष ने की।
- ii. शेखावाटी अन्तः प्रवाही क्षेत्र –
- यह क्षेत्र सीकर, झुन्झुनु, चुरू व उत्तरी नागौर में फैला हुआ है। इस क्षेत्र में बरखान प्रकार के बालूका स्तूपों का बाहुल्य अधिक है।
- इस क्षेत्र में आन्तरिक प्रवाह की नदियों की संख्या अधिक मिलती है इस क्षेत्र में बहने वाली आन्तरिक प्रवाह की सबसे प्रसिद्ध नदी कान्तली है जो पूर्णत: बहाव की दृष्टि से राजस्थान की अन्तः प्रवाह की सबसे लम्बी नदी है।
- इस क्षेत्र में पक्के हुये जोहड़ / नाड़ा व बावड़ीया अधिक मिलती है।
- इस क्षेत्र में भूमिगत चूने के जमाव के कारण हडियाँ के विकार से सम्बन्धित फ्लोराइड की समस्या पाई जाती है।
- Note :- राजस्थान में फ्लोराइड की समस्या से ग्रसित कुब्बड़ चिट्टी बाका पट्टी/होंच बैल्ट का फैलाव अजमेर, नागौर व पाली जिलों की मिलन सीमा पर है।
- iii. नागौर उच्च भूमि प्रदेश :-
- यह प्रदेश नागौर जिले में बाँगड़ा प्रदेश के मध्यवर्ती भाग में फैला हुआ है।
- इस प्रदेश में नमयुक्त झीले- डीडवाना, कुचामन, सांभर, नावा, डेगाना इत्यादि पाई जाती है।
- इस प्रदेश की भूमि सोडियम क्लोराइड के काणों के कारण बंजर के रूप में परिवर्तित हो चुकी है।
- iv. लूनी नदी का बेसिन :-
- इस प्रदेश का निर्माण लूणी व इसकी छोटी-छोटी नदियों के द्वारा हुआ है तथा इस प्रदेश को गौडवाड़ प्रदेश कहते है।
- इस प्रदेश में बालोतरा (बाड़मेर) के बाद नमयुक्त चट्टानों एवं नमक के कणों के कारण लूणी नदी का जल खारा हो जाता है।
- इस प्रदेश की सबसे ऊँची डोरा पर्वत है जो जसवन्तपुरा की पहाड़ियों में स्थित है।
- i. घग्घर का मैदान :-
- थार के मरूस्थल की विशेषताऐं :-
- प्रमुख फसले – बाजरा मोठ व ग्वार (मोटा अनाज की फसलें)
- वनस्पति – बबूल, खेजड़ी, कैर, बैर, सेवण घास
- इन्दिरा गाँधी नहर – थार मरूस्थल की गंगा
- थार का मरूस्थल भारतीय उपमहाद्वीप में ऋतु चक्र को नियत्रित करता है। ग्रीष्मकाल में तेज गर्मी के कारण इस प्रदेश में उच्च तापमान व निम्न वायुदाब का केन्द्र बनता है। जिससे सम्पूर्ण प्रायद्वीप भारत में अच्छी वर्षा होती है।
- वर्षा जल संग्रहण विधियाँ – टाँका व खड़ीन ।
- I. टाँका :-
- पश्चिम राजस्थान में वर्षा के जल को घर के आँगन में बने हुये भूमिगत टैंक में इक्कठा किया जाता है। इसे टाँका कहते है।
- II. खड़ीन :-
- यह वर्षा जल संग्रहण की एक परम्परागत विधी है। जिसका विकास 12 शताब्दी में जैसलमेर के पालीवाल बाह्मणों द्वारा किया गया।
- सर्वाधिक जनसंख्या जनघनत्व पशुसम्पदा वाला मरूस्थल ।
- I. टाँका :-
- बालूका स्तूप युक्त मरूस्थलीय प्रदेश :- राजस्थान मरूस्थल के सुनूर पश्चिमी भाग में कई प्रकार के बालूका स्तूप पाये जाते है। ये बालूका स्तूप वायु अपरदन एवं निक्षेपण का परिणाम है-
- मध्यवर्ती अरावली पर्वतीय प्रदेश –
- अरावली पर्वत विश्व का सबसे पुराना पर्वत है। जिसका निर्माण आज से लगभग 65 करोड़ वर्ष पूर्व धारवाड़ / प्री. कैम्बियन युग में हुआ।
- भारत में अरावली का विस्तार गुजरात के पालनपुर से दिल्ली के रायसीन की पहाड़ी तक 692 | किमी. लम्बाई में फैली हुई है।
- केवल राजस्थान में अरावली का प्रवेश सिरोही से व अन्त खेतड़ी (झुन्झुनु) में होती है ।
- अरावली एक वलित (मोड़दार) पर्वतमाला है।
- वर्तमान स्वरूप के आधार पर अरावली एक अवशिष्ट पर्वतमाला है।
- अरावली पर्वत को वायु पुराण में- आडावल / परिपत्र कहा गया है।
- राजस्थान में अरावली 9% क्षेत्रफल पर 13 जिलों (उदयपुर, चित्तौड़गढ़, राजसमन्द, डुंगरपुर, प्रतापगढ़, भीलवाड़ा, सीकर, झुन्झुनु, अजमेर, सिरोही, अलवर, पाली तथा जयपुर) में फैली हुई है। तथा राजस्थान की कुल जनसंख्या का 10% अरावली में निवास करता है।
- अरावली पर्वत पश्चिमी मरूस्थल के पूर्व में विस्तार को रोकता है।
- राजस्थान में अरावली पर्वत लगभग मध्य से गुजरते हुये राजस्थान के दो भागों में बांटती है।
- पश्चिम राजस्थान – क्षेत्रफल अधिक जनसंख्या विरल – पूर्वी राजस्थान – क्षेत्रफल कम, जनसंख्या अधिक
- अरावली पर्वत के समानान्तर 50 सेमी / 500 मिमी वार्षिक वर्षा रेखा गुजरती है। जो सम्पूर्ण राजस्थान को 2 भागों में बांटती है।
- अरावली गौडवाना लैण्ड का अवशिष्ट है।
- अरावली की समतल से आसत ऊँचाई 930 मीटर है |
- अरावली पर्वत की सर्वाधिक चौड़ाई दक्षिण पश्चिम में है। जो उत्तर पूर्व की और कम हो जाती है।
- राजस्थान में सर्वाधिक अरावली का विस्तार – उदयपुर जिले में व सर्वाधिक ऊँचाई सिरोही जिले में है
- अरावली का सर्वोच्च शिखर सिरोही जिले में आबू पर्वत खण्ड में स्थित गुरू शिखर है (ऊँचाई 1722 मीटर) गुरू शिखर को राजस्थान के इतिहास के जनक कर्नल जेम्स टॉड ने सन्तों का शिखर कहा ।
- अरावली पर्वतश्रेणी राजस्थान की जलवायु को अत्यधिक प्रभावित करती है। तथा महान जल विभाजक का कार्य करती है। इसके पूर्व में स्थित नदियां अपना जल बंगाल की खाड़ी में स्थित नदियां अपना जल अरब सागर में लेकर जाती है।
- अरावली पर्वतमाला का विस्तार अरब सागर से आने वाली दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी पवनों के समानान्तर है ये अतः पवने राजस्थान में बिना वर्षा किये सीधे उत्तर दिशा में चली जाती है। अतः अरब सागर के मानसून से राजस्थान में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है।
- अरावली का वर्गीकरण –
- राजस्थान में अरावली को पुनः 3 भागों में बांटा गया है।
- 1. उत्तरी अरावली –
- उत्तरी अरावली का विस्तार राजस्थान में खेतड़ी (झुन्झुनु) में साभर झील तक है। उत्तरी अरावली का विस्तार 7 जिलों (जयपुर, अलवर, सीकर, झुन्झुनु, दौसा, करौली और सवाईमाधोपुर में है । )
- उत्तरी अरावली का सर्वोच्च शिखर सीकर जिले में स्थित रघुनाहागढ़ है ( ऊँचाई – 1055 मीटर)
- शेखावाटी क्षेत्र (सीकर, चुरू, झुन्झुनु) में अरावली की पहाड़ियों की मलखेत / पलखेत कहा जाता है।
- सीकर जिले में स्थित हर्ष की पहाड़ियों में जीणमाता का मंदिर, रैवासा धाम और रैवासा खारे पानी की झील स्थित है।
- हर्षनाथ की पहाड़ीया अलवर जिले में स्थित है
- झुन्झुनु जिलें खेतड़ी में स्थित कोल्याण की पहाड़ी से उत्तरी अरावली में ताँबा निकाला जाता है तथा झुन्झुनु
- जिलें में उदयपुरवाटी के समीप शाकम्भरी माता का मंदिर और प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लोहर्गल का सम्बन्ध भी उत्तरी अरावली से है
- तोरावाटी प्रदेश – अलवर के बालादुर्ग (झुन्झुनु) के मध्य फैला हुआ भू-भाग ।
- अलवर में उत्तरी अरावली में सरिस्का वन्य जीव अभ्यारणय भर्तृहरि महाराज का मंदिर तथा जीण माता का मंदिर स्थित है।
- करौली में कैलादेवी अभ्यारण, यूसी अभ्यारण्य में स्थित यदुवंशी कुल देवी कैलादेवी का मंदिर और पांचना बाध का सम्बन्ध भी उत्तरी अरावली से है।
- पाँचना बाँध राजस्थान का मिट्टी से निर्मित एकमात्र बांध है जो पाँच नदियाँ – भद्रावती, बरखेड़ा, अटा, माची, भैसावट के संगम पर बना हुआ है।
- जयपुर जिलें में बैराठ के समीप बीजक की पहाड़ियाँ, नाहरगढ़ की पहाड़ियों का सम्बन्ध उत्तरी अरावली से है
- सवाई माधोपुर में स्थित चौथ का बरवाड़ा व अभ्यारण इसी पर्वत से सम्बन्धित है।
- रणथम्भौर में अरावली और विन्ध्याचल पर्वत पर्वत आपस में मिल जाते है।
- 2. मध्य अरावली
- साँभर झील से टाडगढ़ ( अजमेर) के बीच मध्य अरावली का विस्तार 2 जिलों अजमेर व नागौर में है। मध्य अरावली को अजमेर जिले में मेरवाड़ा की पहाड़िया कहा जाता है।
- मध्य अरावली का सर्वोच्च शिखर अजमेर जिलें में स्थित तारागढ़ है (ऊँचाई – 873 मीटर)
- राजस्थान में अरावली का सबसे कम विस्तार अजमेर जिल में है।
- नागौर का मकराना (सफेद संगमरमर हेतु प्रसिद्ध) व डेगाना – भांकरी (टंगस्टन हेतु प्रसिद्ध) का सम्बन्ध मध्य अरावली से है।
- मध्य अरावली में अजमेर के नाग पहाड़ से लूनी नदी का उद्गम होता है।
- अजमेर के किशनगढ़ व ब्यावर का सम्बन्ध भी मध्य अरावली से है।
- 3. दक्षिणी अरावली
- दक्षिणी अरावली का विस्तार टाडगढ से सिरोही तक है। यह दक्षिणी असवली राजस्थान के 9 जिलों राजसमन्द, भीलवाड़ा, पाली सिरोही, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बासवाड़ा और उदयपुर में है।
- इस अरावली में अरावली सुपर (ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट ) की चट्टाने अधिक मिलती है इसी कारण उदयपुर डूंगरपुर राजसमन्द आदि जिलों में लाल मिट्टी पाई जाती है।
- राजस्थान में अरावली का सर्वाधिक विस्तार उदयपुर जिलें में है।
- दक्षिणी अरावली की औसत ऊँचाई 900 1000 मीटर है।
- दक्षिणी अरावली में पाली जिले में रणकपुर के जैन मन्दिर जिनका निर्माण जैन व्यापारी धरणशाह ने करवाया। जैन मंदिर मथाई नदी के किनारे स्थित है तथा सिरोही जिले में स्थित देलवाड़ा के जैन मन्दिर भी दक्षिणी अरावली से सम्बन्धित है। जिनका निर्माण धर्मपाल, विमलशाह ने करवाया।
- राजसमन्द जिले में कुम्भलगढ़ अभ्यारण्य तथा कुम्भलगढ़ दुर्ग का सम्बन्ध भी दक्षिणी अरावली से कुम्भलगढ़ दुर्ग कॉफी ऊँचाई पर स्थित है। इस कारण अबुल फजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा कि “देखने पर सिर की पगड़ी गिर जायें”
- दक्षिणी अरावली में चित्तौड़गढ़ जिले में चित्रकूट पहाड़ी पर तथा मेसा के पठार पर चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित इस दुर्ग को ‘राजस्थान का गौरव कहा जाता है।
- चित्तौड़गढ़ दुर्ग एक जल दुर्ग जो गम्भीरी व बेड़च नदियों के संगम पर बसा हुआ इसका निर्माण 734 ई. (8 वी ring शताब्दी) में चित्रांगढ़ मौर्य ने करवाया।
- चिड़ीयाँटूक की पहाड़ी जोधपुर में है। जिस पर मेहरानगढ़ दुर्ग बना हुआ है।
- दक्षिणी अरावली में सिरोही जिले में ‘आबू पर्वत खण्ड’ स्थित है।
- आबू पर्वत खण्ड
- वह अरावली का श्रेष्ठतम भाग है जिसकी ऊँचाई समुद्रतल से करीब 1200 मीटर है। इस पर्वत का सम्पूर्ण भाग ग्रेनाइट चट्टानों से बना है इस पर्वत खण्ड को स्थलाकृतिक दृष्टि से इसेलबर्ग कहा जाता है। इसी आबू पर्वत खण्ड में उड़िया का पठार स्थित है। जो राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार है जिसकी ऊँचाई समुद्रतल से लगभग 1360 मीटर है। तथा इसी पर्वत खण्ड में अरावली व राजस्थान का सर्वोच्च शिखर गुरू शिखर स्थित है। (ऊँचाई 1722 मीटर)
- राजस्थान के इतिहास के जनक कर्नल जेम्स टॉड ने गुरु शिखर के शान्त वातावरण को देखकर सन्तों का शिखर कहा है।
- गुरू शिखर को गुरूमाथा भी कहा जाता है।
- गुरू शिखर न केवल अरावली व राजस्थान अपितु सम्पूर्ण मध्य भारत का सर्वोच्च शिखर है।
- आबू पर्वत खण्ड में 1200 मीटर की ऊँचाई पर माउण्ट आबू स्थित है जो राजस्थान का सबसे ऊँचा बसा नगर है।
- आबू पर्वत खण्ड में माउण्ट आबू (सिरोही) में नक्की झील है। जो राजस्थान की सबसे ऊँची झील है। तथा नक्की झील राजस्थान की सबसे गहरी झील भी है।
- अरावली की प्रमुख ऊँची चोटियों का अवरोही क्रम
क्र.सं. | चोटी का नाम | सम्बन्धित जिला | समुद्र तल से ऊँचाई |
1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. 9. 10. 11. 12. 13. | गुरू शिखर सेर देलवाड़ा जरगा अचलगढ़ कुम्भलगढ़ धोनिया रघुनाथगढ़ खोह/खो भैराच बरवाड़ा बबाई बिलाली | सिरोही सिरोही सिरोही उदयपुर सिरोही राजसमन्द सिरोही सीकर जयपुर अलवर जयपुर झुंझुनु अलवर | 1722 मीटर 1597 मीटर 1442 मीटर 1431 मीटर 1380 मीटर 1224 मीटर 1183 मीटर 1055 मीटर 920 मीटर 792 मीटर 786 मीटर 780 मीटर 775 मीटर |
- अरावली के प्रमुख पठार:-
- 1. उड़िया का पठार :-
- राजस्थान का सबसे ऊँचा पठार जिसकी ऊँचाई 1360 मीटर है। यह पठार पर्वत खण्ड में सिरोही जिले में स्थित है।
- 2. भोराठ का पठार-
- यह पठार कुम्भलगढ़ (राजसमन्द) से गोगुन्दा (उदयपुर) के बीच फैला हुआ है।
- 3. आबू का पठारः-
- माउण्ट आबू (सिरोही) उडीया के बाद राजस्थान का दूसरा ऊँचा पठार है।
- 4. देशहरो का पठार
- यह पठार उदयपुर में जरगा से रागा के मध्य फैला हुआ है।
- 5. मेसा का पठार
- यह पठार मोर मगरा की पहाड़ियों के बीच चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है। चित्तौड़गढ़ दुर्ग इसी पठार पर स्थित है
- 6. लासड़िया का पठार
- उदयपुर जिले में जयसमन्द झीले के पूर्वी किनारे पर स्थित पठार लासड़िया का पठार कहलाता है ।
- 7. बीजासण का पठार
- भीलवाड़ा जिले में ऊपरमाल के पठार के पश्चिम क्षेत्र में स्थित है।
- 8. क्रास्का एव कांकनवाडी का पठार
- अलवर जिले के सरिस्का अभ्यारण्य में स्थित है।
- 9. ऊपरमाल का पठार
- चित्तौड़गढ़ के भैसरोड़गढ़ से भीलवाड के बिजौलिया के बीच फैले पठार को ऊपरमाल का पठार कहा जाता है।
- 1. उड़िया का पठार :-
- अरावली में स्थित प्रमुख दर्रे (नाल )
- 1. जीलवा / पगल्या की नाल
- यह मारवाड़ से मेवाड़ आने का रास्ता प्रदान करता है।
- 2. देसुरी दर्रा / नाल
- देसुरी (पाली) को चारभुजा मन्दिर (राजसमन्द) से जोड़ता है। अर्थात् यह भी मारवाड़ को मेवाड़ से जोड़ ने वाला दर्श है।
- 3. हाथीगुढ़ा नाल
- सिरोही को गोगुन्दा (उदयपुर) से जोड़ता है।
- यह दर्रा N.H. 76 पर स्थित है।
- 4. खामली घाट ( रामसमंद)
- यह मावली से मारवाड़ जंक्शन को जोड़ता है।
- 5. सोमेश्वर (पाली )
- यह पाली से राजसमंद को जोड़ता है।
- 6. बर दर्रा (पाली )
- यह पाली से अजमेर को जोड़ता है।
- सिरोही जिले के पूर्वी भाग में स्थित अरावली की तीव्र ढाल वाली नुकीली पहाड़ियों को स्थानीय भाषा में भास्कर / भाखर कहते है
- उदयपुर जिले में अरावली की पहाड़ियों को गिरवा कहते है ।
- दक्षिणी अरावली में स्थित डूंगरपुर को पहाड़ों की नगरी कहते है। तथा राजस्थान का एकमात्र जिल प्रतापगढ़ जिसमें वर्तमान में कोई रेलमार्ग नहीं है
- 1. जीलवा / पगल्या की नाल
- पूर्व का नदियों द्वार निर्मित मैदानी प्रदेश
- यह मैदानी भाग अरावली पर्वतमाला के पूर्व में स्थित है। इस मैदानी प्रदेश को पश्चिम से अलग करने वाली वार्षिक वर्षा रेखा – 50 cm है जो सम्पूर्ण राजस्थान को दो भागों में बाटता है।
- यह प्रदेश राज्य का सबसे विकसित एवं उपजाऊ भाग है। प्रमाण के तौर पर यह फैले 23% क्षेत्रफल पर राजस्थान की कुल जनसंख्या का 39% निवास करता है। अर्थात् यह राजस्थान का सबसे सघन बसा हुआ भाग है । अर्थात् जनघनत्व राजस्थानमें इसी प्रदेश का है।
- इस मैदानी प्रदेश दक्षिण पूर्व में विन्ध्यन पठार फैला हुआ है जो विन्ध्याचल पर्वत का अग्रिम भाग है।
- इस मैदानी प्रदेश का उत्तरी पूर्वी भाग- यमुना के मैदानी भाग से मिला हुआ है। तथा इस मैदानी प्रदेश का ढाल पूर्व पूर्व और है।
- इस मैदानी प्रदेश में जलोढ़ व दोमढ़ मिट्टी पाई जाती है । जो सबसे उपजाऊ मिट्टी है।
- इस मैदानी प्रदेश में कुओं से अत्यधिक मात्रा में सिचाई होती है।
- छप्पन का मैदान
- बासवाड़ा से प्रतापगढ़ के मध्य फैला हुआ है। जो इसी मैदानी प्रदेश का भाग है। इसे छप्पन गाँवों के समूही के कारण इस मैदान का नाम छप्पन का मैदान पड़ा
- इस मैदानी प्रदेश को पुनः 3 भागों में बाँटा गया है।
- 1. माही बेसिन अथवा छप्पन का मैदान
- 2. चम्बल बेसिन
- 3. बनास बाणगंगा बेसिन
- 1. माही बेसिन / छप्पन का मैदान
- इस क्षेत्र का विस्तार उदयपुर के दक्षिण पूर्व में डूंगरपुर बाँसवाड़ा व प्रतापगढ़ जिलों में है। यह क्षेत्र माही तथा इसकी सहायक नदियों द्वार सिंचित है।
- माही नदी मध्यप्रदेश के धार जिलें में सरदारपुरा नामक स्थान से (मेहद/महझील) निकलकर बासवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर में बहते हुए गुजरात चली जाती है तथा गुजरात के बाद अन्त में यह नदी खम्भात की खाड़ी में जाकर गिरती है अर्थात् यह नदी खम्भात की खाड़ी में जाकर गिरती है। अर्थात् यह नदी अरब सागर का अपवाह तंत्र बनाती है।
- यह क्षेत्र गहराई तक विच्छेदित है। इस कारण यहाँ के पहाड़ी भू-भाग को स्थानीय भाषा में बांगड़ के नाम से पुकारा जाता है। इस मैदान का ढाल पूर्व से पश्चिम की और है।
- 2.चम्बल बेसिन
- इस बेसिन का निर्माण चम्बल नदी के द्वारा चम्बल नदी मध्य प्रदेश के मऊ के समीप जानापाव पहाड़ी से निकलती है तथा राजस्थान में चित्तौड़गढ़ जिलें की भैसरोडगढ़ तहसील के चौरासीगढ़ गांव से प्रवेश करती है। चम्बल बेसिन क्षेत्र की स्थालाकृति उत्खात स्थलाकृति है। तथा इसके सम्पूर्ण मैदान में नवीन जलोढ़ या कॉप (खाँदर) मिट्टी का जमाव है।
- चम्बल नदी अपनी उत्खनी भूमि हेतु पूरे भारत में प्रसिद्ध है । उत्खानी भूमि (अवनालिका अपरदन) को चम्बल नदी मार्ग में बीहड़ कहा जाता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ धौलपुर व सवाईमाधोपुर जिलों में है।
- इस मैदानी प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनियमित पहाड़िया है। जिन्हें स्थानीय भाषा में डाँग कहा जाता है।
- डॉग क्षेत्र का विस्तार:- भरतपुर, सवाईमाधोपुर, धौलपुर जिलों में
- 3. बनास- बाणगंगा का मैदान :-
- यह मैदान बनास व बाणगंगा तथा बनास की सहायक नदियों बेड़च, कोठारी, मेनांल, खारी, मोरेल, गम्भीरी आदि नदियाँ द्वारा निर्मित है।
- इस मैदानी प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी भाग में मालपुरा-करौल का मैदान स्थित है जो अत्यन्त कटा-फटा एवं बीहड़ युक्त है यह मैदान शिष्ट व नीस चट्टानों से निर्मित है।
- बाणगंगा नदी का उद्गम जयपुर जिलें में बैराठ के समीप बीजक की पहाड़ियों से होता है। जयपुर, दौसा, भरतपुर में बहने के बाद उत्तरप्रदेश के फतेहाबाद में जाकर यमुना में मिल जाती है
- दक्षिणी-पूर्वी पठारी प्रदेश
- यह प्रदेश मालवा के पठार का उत्तरी भाग है । तथा भारत के दक्कन के पठार का भाग है।दक्कन के पठार का निर्माण क्रिटेशियस युग में दरारी उद्गार के ज्वालामुखी से बनी आग्नेय युक्त बेसाल्टिक चट्टानों के अपरदन से हुआ है। बेसाल्टिक चट्टानों का रंग काला था अर्थात् इनके अपरदन से निर्मित काली मिट्टी इस पठारी प्रदेश में पाई जाती है।
- यह मैदानी प्रदेश पूर्व के नदियों द्वारा निर्मित मैदानी से 100 सेमी वार्षिक वर्षा रेखा से अलग होता है। इस प्रदेश का क्षेत्रफल 7% है। तथा राजस्थान की जनसंख्या 11% इस प्रदेश में निवास करता है।
- 1. विन्ध्यन कगार II. हाड़ौती का पठार
- विन्ध्यन कगार:-
- विन्ध्याचल पर्वत का अंतिम भाग विन्ध्यन कगार धौलपुर से करौली, सवाईमाधोपुर, बूँदी (बिजौलिया) भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ होते हुए प्रतापगढ़ तक फैला हुआ है । विन्ध्यन कगार भूमि बड़े-बड़े बलुआ पत्थरों से निर्मित है।
- इसी कारण इस कगार में :-
- धौलपुर से – लाल बलुआ पत्थर
- करौली से – गुलाबी बलुआ पत्थर
- बूँदीसे – सलेटिया पत्थर
- बिजौलिया (भीलवाड़ा) से छतों पर डालने की पट्टिया प्रतापगढ़ के केसरपुरा मानपुरा से हीरा इत्यादि प्राप्त किय जाते है।
- धौलपुर से लाल बलुआ पत्थर निकलने के कारण इसे ‘रेड डायमण्ड सिटी’ कहते है ।
- हाड़ौती का पठार:-
- यह भारत के दक्कन पठार का भाग है तथा बूँदी, बॉरा झालावाड़ जिले में फैला हुआ है।
- इस पठार पर काली / कपासी/रैगुर मिट्टी पाई जाती है। यह काली मिट्टी गन्ना, सोयाबीन सन्तरा हरा धनिया, कपास अफीम जैसी फसलों के लिए उपयोगी है।
- यह प्रदेश मालवा के पठार का उत्तरी भाग है । तथा भारत के दक्कन के पठार का भाग है।दक्कन के पठार का निर्माण क्रिटेशियस युग में दरारी उद्गार के ज्वालामुखी से बनी आग्नेय युक्त बेसाल्टिक चट्टानों के अपरदन से हुआ है। बेसाल्टिक चट्टानों का रंग काला था अर्थात् इनके अपरदन से निर्मित काली मिट्टी इस पठारी प्रदेश में पाई जाती है।
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